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Gandhi Ek Asambhav Sambhavna (Hindi Edition)

Sudhir Chandra
4.9/5 (24983 ratings)
Description:साल-दर-साल दो बार गांधी को रस्मन याद कर बाक़ी वक़्त उन्हें भुलाये रखने के ऐसे आदी हो गए हैं हम कि उनके साथ हमारा विच्छेद कितना गहरा और पुराना है, इसकी सुध तक हमें नहीं है। एक छोटी-सी, पर बड़े मार्के की, बात भी हम भूले ही रहे हैं। वह यह कि पूरे 32 साल तक गांधी अँगरेज़ी राज के ख़िलाफ़ लड़ते रहे, पर अपने ही आज़ाद देश में वह केवल साढ़े पाँच महीने - 169 दिन - ज़िंदा रह पाए। इतना ही नहीं कि वह ज़िंदा रह न सके, हमने ऐसा कुछ किया कि 125 साल तक ज़िंदा रहने की इच्छा रखने वाले गांधी अपने आख़िरी दिनों में मौत की कामना करने लगे। अपनी एक ही वर्षगाँठ देखी उन्होंने आज़ाद हिंदुस्तान में। उस दिन शाम को प्रार्थना-सभा में बोलते हुए उन्होंने कहा: ‘‘मेरे लिए तो आज मातम मनाने का दिन है। मैं आज तक जिन्दा पड़ा हूं। इस पर मुझको खुद आश्चर्य होता है, शर्म लगती है, मैं वही शख्स हूं कि जिसकी जुबान से एक चीज निकलती थी कि ऐसा करो तो करोड़ों उसको मानते थे। पर आज तो मेरी कोई सुनता ही नहीं है। मैं कहूं कि तुम ऐसा करो, ‘नहीं, ऐसा नहीं करेंगे’ ऐसा कहते हैं।...ऐसी हालत में हिन्दुस्तान में मेरे लिए जगह कहां है और मैं उसमें जिन्दा रहकर क्या करूंगा? आज मेरे से 125 वर्ष की बात छूट गई है। 100 वर्ष की भी छूट गई है और 90 वर्ष की भी। आज मैं 79 वर्ष में तो पहुंच जाता हूं, लेकिन वह भी मुझको चुभता है।’’ क्या हुआ कि गांधी ऊपर उठा लिये जाने की प्रार्थना करने लगे दिन-रात? कौन-सी बेचारगी ने घेर लिया उन्हें? क्यों 32 साल के अपने किये-धरे पर उन्हें पानी फिरता नज़र आने लगा? निपट अकेले पड़ गये वह। गांधी के आख़िरी दिनों को देखने-समझने की कोशिश करती है यह किताब। इस यक़ीन के साथ कि यह देखना-समझना दरअसल अपने आपको और अपने समय को भी देखना-समझना है। एक ऐसा देखना- समझना, गांधी की मार्फत, जो शायद हमें और हमारी मापऱ्$त हमारे समय को थोड़ा बेहतर बना दे। गहरी हताशा में भी, भले ही शेखचिल्ली की ही सही, कोई आशा भी बनाए रखना चाहती है गांधी को एक असम्भव सम्भावना मानती यह किताब।We have made it easy for you to find a PDF Ebooks without any digging. And by having access to our ebooks online or by storing it on your computer, you have convenient answers with Gandhi Ek Asambhav Sambhavna (Hindi Edition). To get started finding Gandhi Ek Asambhav Sambhavna (Hindi Edition), you are right to find our website which has a comprehensive collection of manuals listed.
Our library is the biggest of these that have literally hundreds of thousands of different products represented.
Pages
Format
PDF, EPUB & Kindle Edition
Publisher
Release
ISBN
8126721146

Gandhi Ek Asambhav Sambhavna (Hindi Edition)

Sudhir Chandra
4.4/5 (1290744 ratings)
Description: साल-दर-साल दो बार गांधी को रस्मन याद कर बाक़ी वक़्त उन्हें भुलाये रखने के ऐसे आदी हो गए हैं हम कि उनके साथ हमारा विच्छेद कितना गहरा और पुराना है, इसकी सुध तक हमें नहीं है। एक छोटी-सी, पर बड़े मार्के की, बात भी हम भूले ही रहे हैं। वह यह कि पूरे 32 साल तक गांधी अँगरेज़ी राज के ख़िलाफ़ लड़ते रहे, पर अपने ही आज़ाद देश में वह केवल साढ़े पाँच महीने - 169 दिन - ज़िंदा रह पाए। इतना ही नहीं कि वह ज़िंदा रह न सके, हमने ऐसा कुछ किया कि 125 साल तक ज़िंदा रहने की इच्छा रखने वाले गांधी अपने आख़िरी दिनों में मौत की कामना करने लगे। अपनी एक ही वर्षगाँठ देखी उन्होंने आज़ाद हिंदुस्तान में। उस दिन शाम को प्रार्थना-सभा में बोलते हुए उन्होंने कहा: ‘‘मेरे लिए तो आज मातम मनाने का दिन है। मैं आज तक जिन्दा पड़ा हूं। इस पर मुझको खुद आश्चर्य होता है, शर्म लगती है, मैं वही शख्स हूं कि जिसकी जुबान से एक चीज निकलती थी कि ऐसा करो तो करोड़ों उसको मानते थे। पर आज तो मेरी कोई सुनता ही नहीं है। मैं कहूं कि तुम ऐसा करो, ‘नहीं, ऐसा नहीं करेंगे’ ऐसा कहते हैं।...ऐसी हालत में हिन्दुस्तान में मेरे लिए जगह कहां है और मैं उसमें जिन्दा रहकर क्या करूंगा? आज मेरे से 125 वर्ष की बात छूट गई है। 100 वर्ष की भी छूट गई है और 90 वर्ष की भी। आज मैं 79 वर्ष में तो पहुंच जाता हूं, लेकिन वह भी मुझको चुभता है।’’ क्या हुआ कि गांधी ऊपर उठा लिये जाने की प्रार्थना करने लगे दिन-रात? कौन-सी बेचारगी ने घेर लिया उन्हें? क्यों 32 साल के अपने किये-धरे पर उन्हें पानी फिरता नज़र आने लगा? निपट अकेले पड़ गये वह। गांधी के आख़िरी दिनों को देखने-समझने की कोशिश करती है यह किताब। इस यक़ीन के साथ कि यह देखना-समझना दरअसल अपने आपको और अपने समय को भी देखना-समझना है। एक ऐसा देखना- समझना, गांधी की मार्फत, जो शायद हमें और हमारी मापऱ्$त हमारे समय को थोड़ा बेहतर बना दे। गहरी हताशा में भी, भले ही शेखचिल्ली की ही सही, कोई आशा भी बनाए रखना चाहती है गांधी को एक असम्भव सम्भावना मानती यह किताब।We have made it easy for you to find a PDF Ebooks without any digging. And by having access to our ebooks online or by storing it on your computer, you have convenient answers with Gandhi Ek Asambhav Sambhavna (Hindi Edition). To get started finding Gandhi Ek Asambhav Sambhavna (Hindi Edition), you are right to find our website which has a comprehensive collection of manuals listed.
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PDF, EPUB & Kindle Edition
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ISBN
8126721146
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